Dukh Bhanjani Sahib - Summary
दुख भजनी साहिब (Dukh Bhanjani Sahib Hindi PDF) पाठ गुरु अर्जन देव जी द्वारा लिखा गया है। इस पाठ को पढ़ने से अपने जीवन की सारी समस्याएँ दूर हो जाती हैं और मन में नई उर्जा का संचार होता है, जो हमें मुश्किलों का सामना करने में मदद करती है। यदि आप इसका पीडीऍफ़ डाउनलोड करना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए बटन की मदद से फ्री में डाउनलोड करके पढ़ सकते हैं।
Dukh Bhanjani Sahib Path in Hindi
इस पाठ के निरंतर अध्ययन से मन में शांति आती है और भय का नाश होता है। हम सभी को इसका पाठ अवश्य करना चाहिए। दुख भजनी साहिब हिन्दी पीडीएफ़ पाठ के रचनाकार गुरु अर्जुन देव हैं। उन्होंने इस पाठ को बहुत शानदार तरीके से लिखा है, पढ़ने से दिल को बहुत सुकून मिलता है। हमने इस पाठ को पीडीऍफ़ में अच्छे से प्रस्तुत किया है, उम्मीद है सबको यह पसंद आएगा।
Dukh Bhanjani Sahib: A Glimpse into Its Teaching
गउड़ी महला ५ मांझ ॥
दुख भंजनु तेरा नामु जी दुख भंजनु तेरा नामु ॥ आठ पहर आराधीऐ पूरन सतिगुर ग्यानु ॥ १ ॥ रहाउ ॥
जितु घटि वसै पारब्रहमु सोयी सुहावा थाउ ॥ जम कंकरु नेड़ि न आवयी रसना हरि गुन गाउ ॥ १ ॥
सेवा सुरति न जाणिया ना जापै आराधि ॥ ओट तेरी जगजीवना मेरे ठाकुर अगम अगाधि ॥ २ ॥
भए क्रिपाल गुसाईआ नठे सोग संताप ॥ तती वाउ न लगयी सतिगुरि रखे आपि ॥ ३ ॥
गुरु नारायनु दयु गुरु गुरु सचा सिरजणहारु ॥ गुरि तुठै सभ किछु पायआ जन नानक सद बलेहार ॥ ४ ॥ २ ॥ १७० ॥
गउड़ी महला ५ ॥
सूके हरे कीए खिन माहे ॥ अंमृत द्रिसटि संचि जीवाए ॥ १ ॥
काटे कसट पूरे गुरदेव ॥ सेवक कउ दीनी अपुनी सेव ॥ १ ॥ रहाउ ॥
मिटि गई चिंत पुनी मन आसा ॥ करी दया सतिगुरि गुणतासा ॥ २ ॥
दुख नाठे सुख आइ समाए ॥ ढील न परी जा गुरि फुरमाए ॥ ३ ॥
इछ पुनी पूरे गुर मिले ॥ नानक ते जन सुफल फले ॥ ४ ॥ ५८ ॥ १२७ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ताप गए पायी प्रभि सांति ॥ सीतल भए कीनी प्रभ दाति ॥ १ ॥
प्रभ किरपा ते भए सुहेले ॥ जनम जनम के बिछुरे मेले ॥ १ ॥ रहाउ ॥
सिमरत सिमरत प्रभ का नाउ ॥ सगल रोग का बिनस्या थाउ ॥ २ ॥
सहजि सुभाय बोलै हरि बानी ॥ आठ पहर प्रभ सिमरहु प्रानी ॥ ৩ ॥
दूखु दरदु जमु नेड़ि न आवै ॥ कहु नानक जो हरि गुन गावै ॥ ४ ॥ ५੯ ॥ १२८ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
जिसु सिमरत दूखु सभु जाय ॥ नामु रतनु वसै मनि आइ ॥ १ ॥
जपि मन मेरे गोविन्द की बानी ॥ साधू जन रामु रसन वखानी ॥ १ ॥ रहाउ ॥
इकसु बिनु नाही दूजा कोइ ॥ जा की द्रिसटि सदा सुखु होइ ॥ २ ॥
साजनु मीतु सखा करि एकु ॥ हरि हरि अखर मन मह लेखु ॥ ३ ॥
रवि रहआ सरबत सुआमी ॥ गुन गावै नानकु अंतरजामी ॥ ४ ॥ ६२ ॥ १३१ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
कोटि बिघन हिरे खिन माह ॥ हरि हरि कथा साधसंगि सुनाह ॥ १ ॥
पीवत राम रसु अंमृत गुन जासु ॥ जपि हरि चरन मिटी खुधि तासु ॥ १ ॥ रहाउ ॥
सरब कल्यान सुख सहज निधान ॥ जा कै रिदै वसह भगवान ॥ २ ॥
अऔखध मंत्र तंत सभि छारु ॥ करणैहारु रिदे मह धारु ॥ ३ ॥
तजि सभि भरम भज्यो पारब्रहमु ॥ कहु नानक अटल इहु धरमु ॥ ४ ॥ ८० ॥ १४ ॥
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