त्रिपुरभैरवी कवचम् (Tripura Bhairavi Kavacham) Sanskrit PDF

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त्रिपुरभैरवी कवचम् (Tripura Bhairavi Kavacham) - Summary

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त्रिपुरा भैरवी कवचम अद्भुत वैदिक भजनों में से एक है जो देवी त्रिपुरा भैरवी को समर्पित है। हिंदू देवताओं का पांचवां महान ब्रह्मांडीय ज्ञान त्रिपुर भैरवी है, जिसका संबंध बुराई और अशुद्ध के विनाश की भयानक शक्ति और सूक्ष्म सार्वभौमिक अग्नि की ऊर्जा से है। इन पहलुओं के निहितार्थ असंख्य हैं। उदाहरण के लिए, महान ब्रह्मांडीय ज्ञान त्रिपुर भैरवी द्वारा की गई शुद्धिकरण क्रिया का मतलब उनके उद्धारकर्ता पहलू की अभिव्यक्ति है, क्योंकि वह अपने भक्तों को सभी दुखों और नकारात्मक कर्म-दबावों से बचाती हैं।

Tripura Bhairavi Kavacham Benefits

Tripura Bhairavi Kavacham is not just a powerful prayer; it is a protective shield for devotees. By chanting this sacred text, devotees can seek blessings and protection from negative energies and obstacles in their lives.

यही नहीं, यह कवच सभी प्रकार की दुखों से मुक्ति, मानसिक शांति और समृद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसके पाठ से व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा और जीवन में नयापन मिलता है। इस कवच को नियमित रूप से पढ़ने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।

Tripura Bhairavi Kavacham Lyrics Sanskrit

श्रीपार्वत्युवाच

देवदेव महादेव सर्वशास्त्रविशारद ।
कृपाङ्कुरु जगन्नाथ धर्मज्ञोऽसि महामते ॥ १॥

भैरवी या पुरा प्रोक्ता विद्या त्रिपुरपूर्विका ।
तस्यास्तु कवचन्दिव्यं मह्यङ्कथय तत्त्वतः ॥ २॥

तस्यास्तु वचनं श्रुत्वा जगाद जगदीश्वरः ।
अद्भुतङ्कवचन्देव्या भैरव्या दिव्यरूपि वै ॥ ३॥

ईश्वर उवाच

कथयामि महाविद्याकवचं सर्वदुर्लभम् ।
श‍ृणुष्व त्वञ्च विधिना श्रुत्वा गोप्यन्तवापि तत् ॥ ४॥

यस्याः प्रसादात्सकलं बिभर्मि भुवनत्रयम् ।
यस्याः सर्वं समुत्पन्नयस्यामद्यापि तिष्ठति ॥ ५॥

माता पिता जगद्धन्या जगद्ब्रह्मस्वरूपिणी ।
सिद्धिदात्री च सिद्धास्स्यादसिद्धा दुष्टजन्तुषु ॥ ६॥

सर्वभूतहितकरी सर्वभूतस्वरूपिणी ।
ककारी पातु मान्देवी कामिनी कामदायिनी ॥ ७॥

एकारी पातु मान्देवी मूलाधारस्वरूपिणी ।
इकारी पातु मान्देवी भूरि सर्वसुखप्रदा ॥ ८॥

लकारी पातु मान्देवी इन्द्राणी वरवल्लभा ।
ह्रीङ्कारी पातु मान्देवी सर्वदा शम्भुसुन्दरी ॥ ९॥

एतैर्वर्णैर्महामाया शम्भवी पातु मस्तकम् ।
ककारे पातु मान्देवी शर्वाणी हरगेहिनी ॥ १०॥

मकारे पातु मान्देवी सर्वपापप्रणाशिनी ।
ककारे पातु मान्देवी कामरूपधरा सदा ॥ ११॥

ककारे पातु मान्देवी शम्बरारिप्रिया सदा ।
पकारी पातु मान्देवी धराधरणिरूपधृक् ॥ १२॥

(Additional verses continue…)

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