पंचमुखी हनुमान कवच (Panchmukhi Hanuman Kavach) Hindi PDF

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पंचमुखी हनुमान कवच (Panchmukhi Hanuman Kavach) - Summary

पंचमुखी हनुमान कवच (Hanuman Kavach) का पाठ प्रतिदिन करना बहुत फायदेमंद है। खासकर, श्री हनुमान जयंती के दिन इस कवच का पाठ करने का महत्व और भी बढ़ जाता है।

पंचमुखी हनुमान कवच के लाभ

यदि आप नियमित रूप से पंचमुखी हनुमान कवच का पाठ करते हैं, तो आप महसूस करेंगे कि यह सभी कष्ट, रोग और निराशाएँ दूर कर देता है। यह पाठ आपके जीवन में खुशी और संतोष भर देता है।

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हम आपके लिए पंचमुखी हनुमान कवच को PDF फॉर्मैट में उपलब्ध करा रहे हैं, जिसमें हिन्दी अनुवाद भी सम्मिलित है। इसे डाउनलोड करके आप प्रतिदिन इसका पाठ कर सकते हैं और अपने जीवन में सकारात्मकता ला सकते हैं।

पंचमुखी हनुमान कवच पाठ हिंदी में – Panchmukhi Hanuman Kavach

श्रीगणेशाय नम:| ॐ अस्य श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषि:| गायत्री छंद:| पञ्चमुख-विराट् हनुमान् देवता| ह्रीं बीजम्, श्रीं शक्ति:, क्रौं कीलकम्, क्रूं कवचम्, ‘क्रैं अस्त्राय फट्’ इति दिग्बन्ध:|

अर्थ :- इस स्तोत्र के ऋषि ब्रह्मा हैं, छंद गायत्री है, देवता पंचमुख-विराट-हनुमानजी हैं, ह्रीं बीज है, श्रीं शक्ति है, क्रौं कीलक है, क्रूं कवच है और ‘क्रैं अस्त्राय फट्’ यह दिग्बन्ध है|

श्री गरुड उवाच ॥

थ ध्यानं प्रवक्ष्यामि शृणु सर्वांगसुंदर|

यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमत: प्रियम् ॥१॥

अर्थ :- गरुडजी ने कहा हे सर्वांगसुंदर, देवाधिदेव को प्रिय और उनके द्वारा किया गया हनुमानजी का ध्यान बता रहा हूँ, सुनो|

महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम्|

बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम् ॥२॥

अर्थ :- पाँच मुख वाले, अत्यन्त विशाल, पंद्रह नेत्र वाले ये पंचमुख-हनुमानजी हैं| दस हाथों से युक्त, वे सभी काम और अर्थ की सिद्धि कराने वाले हैं।

पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम्|

दंष्ट्राकरालवदनं भ्रुकुटिकुटिलेक्षणम्॥३॥

अर्थ :- इनका पूर्व दिशा का या पूर्व दिशा की ओर देखने वाला मुख वानरमुख है।

अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम्|

अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम् ॥४॥

अर्थ :- इनके दक्षिण दिशा का मुख नारसिंह का है।

पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम् |

सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम्॥५॥

अर्थ :- पश्चिम दिशा का मुख गरुडमुख है, जो सभी नागों का प्रशमन करता है।

उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम्|

पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम् ॥६ ॥

अर्थ :- उत्तर दिशा का मुख वराहमुख है, जो सभी बुराईयों को दूर करता है।

ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम्|

येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासुरम् ॥

जघान शरणं तत्स्यात्सर्वशत्रुहरं परम्|

ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम् ॥८॥

अर्थ :- ऊर्ध्व दिशा का मुख अश्वमुख है, जो सभी दानवों का नाश करता है।

खड़्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पाशमङ्कुशपर्वतम् |

मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम् ॥

भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुङ्गवम्|

एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम्॥१०॥

अर्थ :- पंचमुख-हनुमानजी के हाथों में तलवार, त्रिशूल, खट्वाङ्ग, पाश, अंकुश, पर्वत हैं|

प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम्|

दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्॥११॥

अर्थ :- वे प्रेतासन पर बैठे हैं, सभी अलंकारों से सुशोभित हैं|

सर्वाश्‍चर्यमयं देवं हनुमद्विश्‍वतो मुखम् ॥

पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं

शशाङ्कशिखरं कपिराजवर्यम्|

पीताम्बरादिमुकुटैरुपशोभिताङ्गं

पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि॥१२॥

अर्थ :- ये पंचमुख-हनुमानजी आश्‍चर्य से भरे हुए हैं, जो हमें हर तरह के संकट से बचाते हैं।

मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम्|

शत्रुं संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर॥

अर्थ :- हे प्रचंड उत्साही वानर श्रेष्ठ हनुमानजी, मेरे शत्रुओं का संहार कीजिए, मेरी रक्षा कीजिए|

ॐ हरिमर्कट मर्कट मन्त्रमिदं परिलिख्यति लिख्यति वामतले|

यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुञ्चति मुञ्चति वामलता॥

ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा|

अर्थ :- महाप्राण हनुमानजी के बाँये पैर के तलवे के नीचे ‘ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा’ यह जो लिखेगा, उसके शत्रु का ही नहीं बल्कि शत्रुकुल का नाश हो जायेगा|

नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा|

ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा

ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पश्चिममुखाय गरुडाननाय सकलविषहराय स्वाहा|

ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय सकलसंपत्कराय स्वाहा|

ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशकराय स्वाहा|

। ॐ अस्य श्री पञ्चमुख हनुमन्मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः । अनुष्टुप्छन्दः । पञ्चमुख वीरहनुमान् देवता । हनुमानिति बीजम् ।

वायुपुत्र इति शक्तिः । अञ्जनीसुत इति कीलकम् । श्रीरामदूत हनुमत्प्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । इति ऋष्यादिकं विन्यसेत् ।

ॐ अञ्जनीसुताय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । ॐ रुद्रमूर्तये तर्जनीभ्यां नमः ।

ॐ वायुपुत्राय मध्यमाभ्यां नमः । ॐ अग्निगर्भाय अनामिकाभ्यां नमः । ॐ रामदूताय कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ पञ्चमुखहनुमते करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । इति करन्यासः ।

ॐ अञ्जनीसुताय हृदयाय नमः । ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा । ॐ वायुपुत्राय शिखायै वषट् । ॐ अग्निगर्भाय कवचाय हुम् । ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट् ।

ॐ पञ्चमुखहनुमते अस्त्राय फट् । पञ्चमुखहनुमते स्वाहा । इति दिग्बन्धः ।

अथ ध्यानम् । वन्दे वानर नारसिंह खगराट्क्रोडाश्व वक्त्रान्वितं दिव्यालङ्करणं त्रिपञ्चनयनं देदीप्यमानं रुचा ।

हस्ताब्जैर सिखेटपुस्तक सुधाकुम्भांकुशाद्रिं हलं खट्वाङ्गं फणि भूरुहं दशभुजं सर्वारिवीरापहम् ।

अथ मन्त्रः । ॐ श्रीरामदूतायाञ्जनेयाय वायुपुत्राय महाबल पराक्रमाय सीतादुःखनिवारणाय लङ्कादहन कारणाय महाबलप्रचण्डाय

फाल्गुनसखाय कोलाहलसकलब्रह्माण्डविश्वरूपाय सप्तसमुद्रनिर्लङ्घनाय पिङ्गलनयनायां अमितविक्रमाय सूर्यबिम्बफलसेवनाय दुष्टनिवारणाय दृष्टि निरालङ्कृताय सञ्जीविनी सञ्जीविताङ्गदलक्ष्मण महाकपिसैन्यप्राणदाय

दशकण्ठविध्वंसनाय रामेष्टाय महाफाल्गुनसखाय सीतासहित- रामवरप्रदाय षट्प्रयोगागम पञ्चमुखवीरहनुमन्मन्त्रजपे विनियोगः । ॐ हरिमर्कटमर्कटाय बंबंबंबंबं वौषट् स्वाहा । ॐ हरिमर्कटमर्कटाय फंफंफंफंफं फट् स्वाहा ।

ॐ हरिमर्कटमर्कटाय खेंखेंखेंखेंखें मारणाय स्वाहा । ॐ हरिमर्कटमर्कटाय लुंलुंलुंलुंलुं आकर्षितसकलसम्पत्कराय स्वाहा । ॐ हरिमर्कटमर्कटाय धंधंधंधंधं शत्रुस्तम्भनाय स्वाहा ।

ॐ टंटंटंटंटं कूर्ममूर्तये पञ्चमुखवीरहनुमते परयन्त्रपरतन्त्रोच्चाटनाय स्वाहा ।

ॐ कंखंगंघंङं चंछंजंझंञं टंठंडंढंणं तंथंदंधंनं पंफंबंभंमं यंरंलंवं शंषंसंहं ळं क्षं स्वाहा । इति दिग्बन्धः ।

ॐ पूर्वकपिमुखाय पञ्चमुखहनुमते टंटंटंटंटं सकलशत्रुसंहरणाय स्वाहा । ॐ दक्षिणमुखाय पञ्चमुखहनुमते करालवदनाय नरसिंहाय

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः सकलभूतप्रेतदमनाय स्वाहा । ॐ पश्चिममुखाय गरुडाननाय पञ्चमुखहनुमते मंमंमंमंमं सकलविषहराय स्वाहा । ॐ उत्तरमुखायादिवराहाय लंलंलंलंलं

नृसिंहाय नीलकण्ठमूर्तये पञ्चमुखहनुमते स्वाहा । ॐ उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुंरुंरुंरुंरुं रुद्रमूर्तये सकलप्रयोजन निर्वाहकाय स्वाहा । ॐ अञ्जनीसुताय वायुपुत्राय महाबलाय सीताशोकनिवारणाय श्रीरामचन्द्र कृपापादुकाय

महावीर्य प्रमथनाय ब्रह्माण्डनाथाय कामदाय पञ्चमुखवीरहनुमते स्वाहा । भूतप्रेतपिशाचब्रह्मराक्षस शाकिनीडाकिन्यन्तरिक्षग्रह- परयन्त्रपरतन्त्रोच्चटनाय स्वाहा । सकलप्रयोजननिर्वाहकाय पञ्चमुखवीरहनुमते

श्रीरामचन्द्रवरप्रसादाय जंजंजंजंजं स्वाहा ।

यहाँ पर श्री हनुमत कवच का मूल पाठ खत्म हो जाता है। इसके आगे अन्य निर्देश हैं ।

इदं कवचं पठित्वा तु महाकवचं पठेन्नरः । एकवारं जपेत्स्तोत्रं सर्वशत्रुनिवारणम् ॥ १५॥ द्विवारं तु पठेन्नित्यं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम् । त्रिवारं च पठेन्नित्यं सर्वसम्पत्करं शुभम् ॥

१६॥ चतुर्वारं पठेन्नित्यं सर्वरोगनिवारणम् । पञ्चवारं पठेन्नित्यं सर्वलोकवशङ्करम् ॥ १७॥ षड्वारं च पठेन्नित्यं सर्वदेववशङ्करम् । सप्तवारं पठेन्नित्यं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥ १८॥ अष्टवारं पठेन्नित्यमिष्टकामार्थसिद्धिदम् ।

नववारं पठेन्नित्यं राजभोगमवाप्नुयात् ॥ १९॥ दशवारं पठेन्नित्यं त्रैलोक्यज्ञानदर्शनम् । रुद्रावृत्तिं पठेन्नित्यं सर्वसिद्धिर्भवेद्ध्रुवम् ॥ २०॥ निर्बलो रोगयुक्तश्च महाव्याध्यादिपीडितः । कवचस्मरणेनैव महाबलमवाप्नुयात् ॥

इति श्रीसुदर्शनसंहितायां श्रीरामचन्द्रसीताप्रोक्तं श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचं सम्पूर्णम् ॥

अर्थ :- इसमें कहा गया है कि चतुरवारं पठेननित्यं सर्व रोग निवारणं, इसलिए आपको इसे दिन में चार बार पढ़ना या सुनना चाहिए। मैंने यहाँ तक हिंदी में समझाने की कोशिश की है, लेकिन मूल पाठ को मैंने अविरल पढ़ दिया है ताकि आप इसे रोज सुन सके। मेरी प्रार्थना है कि बजरंगबली हनुमान इस कोरोना के संकट से अवश्य आपकी रक्षा करें।

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