नाड़ी दर्शन (Nadi Darshan) - Summary
नाड़ी दर्शन (Nadi Darshan) एक प्राचीन और महत्वपूर्ण उपचार पद्धति है, जो नाड़ी ज्ञान के माध्यम से रोग की पहचान और उसकी चिकित्सा में सहायक होती है। कुछ लोग इसे मात्र ढकोसला मानते हैं, जबकि यह आयुर्वेद के व्यापक विज्ञान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आयुर्वेद, विशेषकर वृद्धात्रयी (चरक-सुश्रुत-वाग्भट्ट) में नाड़ी का उल्लेख न होने के बावजूद, नाड़ी विज्ञान की चर्चा शार्गंधर आदि ग्रंथों में कैसे और कहाँ से शुरू हुई, यह एक रोचक प्रश्न है।
आयुर्वेद और नाड़ी विज्ञान का संबंध
जब हम सम्यक्तया अवलोकन करते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि आयुर्वेद अनेक दर्शनशास्त्रों के समन्वय पर आधारित है। न्याय, सांख्य, वैशेषिक, योग और वेदान्त जैसे दर्शनों का आयुर्वेद में व्यापक उपयोग किया गया है। यह जानकारी चरक और शुश्रुत के सूत्रों, शारीर और विमान आदि स्थानों के अध्ययन से भी प्राप्त होती है।
नाड़ी परीक्षण की पुष्टि
हालांकि वृद्धत्रयी में नाड़ी परीक्षण का सीधे तौर पर उल्लेख नहीं है, फिर भी “दर्शनस्पर्शनप्रश्नैः परीक्षेताथ रोगिणम्” जैसे सूत्रों से नाड़ी की उपस्थिति को दर्शाया गया है। इसके अतिरिक्त, “इत्यष्टविधमाख्यातं योगिनामैश्वरं बलम्” जैसे कथनों से भी यह स्पष्ट होता है कि चरक में योग शास्त्र का उचित प्रयोग किया गया है।
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