वसीयत कहानी का सारांश PDF

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वसीयत कहानी का सारांश - Summary

भगवती चरण वर्मा की मज़ेदार कहानी ‘वसीयत’ का सारांश अब आपके लिए आसानी से पढ़ने के लिए उपलब्ध है। वसीयत कहानी भगवती चरण वर्मा द्वारा लिखी गई एक अनोखी कहानी है। इसमें मुख्य पात्र चूड़ामणि जी अपने परिवार के सदस्यों के व्यवहार एवं आदतों को अच्छे से जानते हैं। वे उन पर विश्वास नहीं करते थे, और यहाँ तक कि अपनी पत्नी जसोदा देवी पर भी विश्वास नहीं था। चूड़ामणि जी ने किसी को भी वसीयत सौंपने या अपना उत्तराधिकारी बनाने के योग्य नहीं समझा, और अपने परम शिष्य जनार्दन जोशी को वसीयत सौंप दी, ताकि उनकी मृत्यु के बाद वह इसे परिवार वालों के सामने पढ़कर सुनाएँ।

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इस वसीयत कहानी में सभी पात्रों की कमजोरियों को बहुत अच्छे से दर्शाया गया है। लेखक ने व्यंगात्मक ढंग से उनकी कमियों को उजागर किया है, साथ ही समाज की आधुनिक व्यवस्था पर भी उनकी सोच दिखाई है। जब पात्र अपने नाम और उनकी कमजोरियों को सुनते हैं, तो वे पहले गुस्सा होते हैं, लेकिन जब रुपये पैसे की बात आती है, तो चुप रह जाते हैं और वसीयत में लिखी कठोर शर्तों को मानने के लिए तैयार हो जाते हैं।

वसीयत कहानी के महत्वपूर्ण पहलू

  1. ‘वसीयत’ कहानी ‘भगवती चरण वर्मा’ द्वारा लिखी गई एक पारिवारिक ताने-बाने पर आधारित है। इसके मुख्य पात्र पंडित चूड़ामणि मिश्र हैं, जो अपने बच्चों द्वारा उपेक्षित हैं। उनके दो बेटे और तीन बेटियाँ हैं, लेकिन सभी उनकी उपेक्षा करते हैं और उनसे दूर रहते हैं। उनकी पत्नी भी उनसे कुछ अलग रहती हैं।
  2. एक लंबी बीमारी के बाद, जब उनका देहांत होता है, तो वे अपनी वसीयत में बच्चों और पत्नी के नाम संपत्ति लिखकर जाते हैं। यह कहानी उसी विषय पर आधारित है।
  3. आचार्य चूड़ामणि मिश्र के दो बेटे लालमणि और नीलमणि हैं, जिनके नाम वसीयत में संपत्ति का थोड़ा-थोड़ा हिस्सा छोड़ा गया है। वे अपनी बेटियों तथा पत्नी को भी संपत्ति का थोड़ा हिस्सा देकर जाते हैं।
  4. यह कहानी संपत्ति के लोभी संबंधियों की मनोदशा को दर्शाती है, जो संपत्ति के लोभ में रिश्तों की गरिमा को भूल जाते हैं। यह कहानी पिता-पुत्र और पति-पत्नी के बीच के संबंधों को, आज की भागदौड़ और संपत्ति के लोभ से उत्पन्न दरार को रेखांकित करती है।
  5. ‘वसीयत’ उन लोगों की मानसिकता पर केंद्रित है जो अपने स्वार्थ के कारण केवल धन को महत्व देते हैं। इसमें मुख्य पात्र पंडित चूड़ामणि मिश्र की वसीयत पर आधारित है, और यह उन पुत्रों एवं पत्नियों के लोभ को उजागर करती है, जो अपने अभिभावकों का जीते जी ध्यान नहीं रखते।
  6. जब चूड़ामणि मिश्र मृत्यु के बाद अपनी संपत्ति का हिस्सा छोड़ जाते हैं, तो उनके बच्चे पहले अपशब्द बोलते हैं और फिर धन मिलने पर अपने पिता की तारीफ करने लगते हैं। पहले जिस पिता को उन्होंने अपमानित किया था, अब उसके प्रति संवेदना जताते हैं। यही दिखावा उनकी पत्नी और बहुओं द्वारा भी किया जाता है।
  7. यह कहानी उस सामाजिक मानसिकता का चित्रण करती है, जहाँ सारे रिश्ते केवल स्वार्थ और धन से बंधे हैं। धन-संपत्ति के केंद्र में आने पर ये रिश्ते प्रिय लगने लगते हैं और इसी कारण रिश्तों में दरार भी पड़ जाती है।
  8. यह कहानी उस विडंबना को प्रदर्शित करती है, जहाँ रिश्तों में आत्मीयता का अभाव हो गया है और वे केवल स्वार्थ पूर्ति के साधन बनकर रह गए हैं। पति-पत्नी और पिता-पुत्र-पुत्री जैसे घनिष्ठ संबंध भी अब स्वार्थ की डोर से बंधकर रह गए हैं।
  9. कहानी के मुख्य पात्र पंडित चूड़ामणि मिश्र भी ऐसे ही स्वार्थी संबंधों के शिकार हैं, जो कि उनकी मृत्यु के उपरांत भी कायम रहते हैं। यही समस्या समाज की सबसे बड़ी समस्या बन गई है।

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