Surya Mandala Ashtakam Sanskrit

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सूर्य मंडल स्तोत्र Sanskrit

सूर्य मंडल स्तोत्र सूर्यदेव का एक दिव्य स्तोत्र है, जिसके नियमित पाठ से आप अपने जीवन में अनेक प्रकार की सफलताएं प्राप्त कर सकते हैं। इस स्तोत्र को सूर्य मंडल अष्टकम के नाम से भी जाना जाता है। आप सभी के लिए हमने नीचे सूर्य मंडल स्तोत्र दिया गया हैं।  जिसके द्वारा आप इसका पाठ कर सकते हैं तथा पुण्यलाभ कमा सकते हैं। या एक सिद्ध स्तोत्र है जिसके प्रभाव से सूर्यदेव शीघ्र प्रसन्न होकर पाठ करने वाले का कल्याण करते हैं तथा शुभ आशीर्वाद प्रदान करते हैं। हम सूयदेव से आप सभी के लिए मंगलकामना करते हैं।

सूर्यदेव की कृपा जिस व्यक्ति पर हो जाती है, वह व्यक्ति अनेक प्रकार की सुख – सुविधाओं को प्राप्त करता है। यदि आपको बहुत से रोगों ने लम्बे समय से घेर रखा है, तो इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। इस स्तोत्र के फलस्वरूप आप सभी रोगों से मुक्त हो जाते हैं।

सूर्य मंडल स्तोत्र इन हिंदी (Surya Mandala Stotram Lyrics in Hindi )

नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषे जगत्प्रसूती स्थितिनाशहेतवे ।

त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरञ्चि नारायण शङ्करात्मन् ।

नमोऽस्तु सूर्याय सहस्ररश्मये सहस्रशाखान्वितसम्भवात्मने ।

सहस्रयोगोद्भवभावभागिने सहस्रसङ्ख्यायुगधारिणे नमः ॥

यन्मण्डलं दीप्तिकरं विशालं रत्नप्रभं तीव्रमनादिरूपम् ।

दारिद्र्यदुःखक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ १॥

यन्मण्डलं देवगणैः सुपूजितं विप्रैः स्तुतं भावनमुक्तिकोविदम् ।

तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ २॥

यन्मण्डलं ज्ञानघनं त्वगम्यं त्रैलोक्यपूज्यं त्रिगुणात्मरूपम् ।

समस्त-तेजोमय-दिव्यरूपं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ३॥

यन्मण्डलं गूढमतिप्रबोधं धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम् ।

यत्सर्वपापक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ४॥

यन्मण्डलं व्याधिविनाशदक्षं यदृग्यजुःसामसु सम्प्रगीतम् ।

प्रकाशितं येन च भूर्भुवः स्वः पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ५॥

यन्मण्डलं वेदविदो वदन्ति गायन्ति यच्चारण-सिद्धसङ्घाः ।

यद्योगिनो योगजुषां च सङ्घाः पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ६॥

यन्मण्डलं सर्वजनैश्च पूजितं ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके ।

यत्कालकालाद्यमनादिरूपं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ७॥

यन्मण्डलं विष्णुचातुर्मुखाख्यं यदक्षरं पापहरं जनानाम् ।

यत्कालकल्पक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ८॥

यन्मण्डलं विश्वसृजं प्रसिद्धमुत्पत्ति-रक्षा-प्रलय-प्रगल्भम् ।

यस्मिञ्जगत्संहरतेऽखिलं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ९॥

यन्मण्डलं सर्वगतस्य विष्णोरात्मा परं धाम विशुद्धतत्त्वम् ।

सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ १०॥

यन्मण्डलं वेदविदो वदन्ति गायन्ति यच्चारण-सिद्धसङ्घाः ।

यन्मण्डलं वेदविदः स्मरन्ति पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ११॥

यन्मण्डलं वेदविदोपगीतं यद्योगिनां योगपथानुगम्यम् ।

तत्सर्ववेद्यं प्रणमामि सूर्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ १२॥

सूर्यमण्डलसुस्तोत्रं यः पठेत् सततं नरः ।

सर्वपापविशुद्धात्मा सूर्यलोके महीयते ॥ १३॥

॥ इति श्री भविष्योत्तरपुराणे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे सूर्यमण्डलस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

सूर्यमण्डलद्वादशस्तोत्रम्

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