Bhartiya Jyotish Vigyan (भारतीय ज्योतिष शास्त्र) Hindi
प्रत्येक काल में मनुष्य के ज्ञान की एक सीमा रही है । अज्ञात क्षेत्र का ज्ञान प्राप्त करने के प्रयास सदैव जारी रहे हैं । प्राचीन भारत में ज्योतिष विज्ञान एक प्रमुख विज्ञान था । लेकिन किसी भी विषय का सामान्य ज्ञान जनसाधारण को न होने की दशा में उस विषय के प्रति जनसामान्य में अनेक भ्रांतियाँ पैदा हो जाती हैं । वैसा ही कुछ ज्योतिष के बारे में भी है । लेकिन ज्योतिष एक पूर्ण विज्ञान है । जनसामान्य को ज्योतिष की विज्ञान-सम्मत जानकारी हासिल कराना; वह ज्योतिष के अर्द्धज्ञानी व्यक्तियों की ‘ पैसा खींचू मानसिकता ‘ का शिकार न बने तथा ज्योतिष विज्ञान के वास्तविक लाभ अपने परिवार एवं समाज हेतु प्राप्त हों—ये ही इस पुस्तक के उद्देश्य हैं
इस विज्ञान के पठन-पाठन, प्रयोग-अन्वेषण आदि की उचित व्यवस्था की! ज्योतिष का पर्याप्त ज्ञान रखनेवाले व्यक्ति बहुत कम है, परतु समाज में सभी लोग अपना भूत-भविष्य जानना चाहते है। ऐसी स्थिति में आवश्यकता आपूर्ति का वही उदाहरण लागू होगा, जो दूध की मॉग अधिक होने पर दूधिया द्वारा दूध में पानी की मात्रा बढ़ाने की प्रवृति को जन्म र देता है।
Bhartiya Jyotish Vigyan – भारतीय ज्योतिष शास्त्र
आवश्यकता है इस विज्ञान के पठन-पाठन, प्रयोग-अन्वेषण आदि की उचित व्यवस्था की! ज्योतिष का पर्याप्त ज्ञान रखनेवाले व्यक्ति बहुत कम है, परतु समाज में सभी लोग अपना भूत-भविष्य जानना चाहते है। ऐसी स्थिति में आवश्यकता आपूर्ति का वही उदाहरण लागू होगा, जो दूध की मॉग अधिक होने पर दूधिया द्वारा दूध में पानी की मात्रा बढ़ाने की प्रवृति को जन्म र देता है। कनि पत्र एक पुस्तक पढकर कोई भक्ति ज्योतिषी नही दतः सकता है परंतु यह बात अवश्य है कि रूचि स्खनेवाले सभी व्यक्तियों को नतिष विज्ञान के मूल तत्वों का ज्ञान अवश्य प्राप्त हो जाए तथा हम जातिय को एक विज्ञान रूप मे समझने का प्रयास करे।
प्राचीन भारत में ज्योतिष का अर्थ ग्रहों और नक्षत्रों की चाल का अध्ययन करने के लिए था, यानि ब्रह्माण्ड के बारे में अध्ययन। कालान्तर में फलित ज्योतिष के समावेश के चलते ज्योतिष शब्द के मायने बदल गए और अब इसे लोगों का भाग्य देखने वाली विद्या समझा जाता है। ज्ञान पानवाले ज्योतिषी के संपर्क का सौभाग्य यदि आपको – वास्तव में प्राप्त हो जाए तो निरसदार आप अपने अरा सामान्य ज्ञान की सहायता से उसमानी के शान को समझने में सक्षम होगे लेखक का मानना है
भारत का प्राचीनतम उपलब्ध साहित्य वैदिक साहित्य है। वैदिककाल के भारतीय यज्ञ किया करते थे। यज्ञों के विशिष्ट फल प्राप्त करने के लिये उन्हें निर्धारित समय पर करना आवश्यक था इसलिए वैदिककाल से ही भारतीयों ने वेधों द्वारा सूर्य और चंद्रमा की स्थितियों से काल का ज्ञान प्राप्त करना शुरू किया। पंचांग सुधारसमिति की रिपोर्ट में दिए गए विवरण (पृष्ठ 218) के अनुसार ऋग्वेद काल के आर्यों ने चांद्र-सौर वर्षगणना पद्धति का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। वे 12 चांद्र मास तथा चांद्र मासों को सौर वर्ष से संबद्ध करनेवाले अधिमास को भी जानते थे। दिन को चंद्रमा के नक्षत्र से व्यक्त करते थे। उन्हें चंद्रगतियों के ज्ञानोपयोगी चांद्र राशिचक्र का ज्ञान था। वर्ष के दिनों की संख्या 366 थी, जिनमें से चांद्र वर्ष के लिये 12 दिन घटा देते थे। रिपोर्ट के अनुसार ऋग्वेदकालीन आर्यों का समय कम से कम 1,200 वर्ष ईसा पूर्व अवश्य होना चाहिए। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की ओरायन के अनुसार यह समय शक संवत् से लगभग 4000 वर्ष पहले ठहरता है।
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