Ganesh Geeta – गणेश गीता Hindi

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Ganesh Geeta – गणेश गीता in Hindi

गणेश गीता (Ganesh Geeta)

भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में गीता उपदेश दिया था, यह बात तो सब जानते हैं लेकिन विघ्न विनाशक गणपति ने भी गीता का उपदेश दिया था।

श्रीकृष्ण गीता और गणेश गीता में लगभग सारे विषय समान हैं। बस दोनों में उपदेश देने की मन: स्थिति में अंतर है। भगवत गीता का उपदेश कुरुक्षेत्र के मैदान में, मोह और अपना कर्तव्य भूल चुके अर्जुन को दिया गया था। लेकिन गणेश गीता में विघ्नविनाशक गणपति, यह उपदेश युद्ध के बाद, राजा वरेण्य को देते हैं। दोनों ही गीता में गीता सुनने वाले श्रोताओं अर्जुन और राजा वरेण्य की स्थिति और परिस्थिति में अंतर है।

श्रीगणेश गीता – Shree Ganesh Geeta

देवराज इंद्र समेत सारे देवी देवता, सिंदूरा दैत्य के अत्याचार से परेशान थे। जब ब्रह्मा जी से सिंदूरा से मुक्ति का उपाय पूछा गया तो उन्होने गणपति के पास जाने को कहा। सभी देवताओं ने गणपति से प्रार्थना की कि वह दैत्य सिंदूरा के अत्याचार से मुक्ति दिलायें। देवताओं और ऋषियों की आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उन्होंने मां जगदंबा के घर गजानन रुप में अवतार लिया। इधर राजा वरेण्य की पत्नी पुष्पिका के घर भी एक बालक ने जन्म लिया। लेकिन प्रसव की पीड़ा से रानी मूर्छित हो गईं और उनके पुत्र को राक्षसी उठा ले गई। ठीक इसी समय भगवान शिव के गणों ने गजानन को रानी पुष्पिका के पास पहुंचा दिया। क्योंकि गणपति भगवान ने कभी राजा वरेण्य की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वह उनके यहां पुत्र रूप में जन्म लेंगे।

लेकिन जब रानी पुष्पिका की मूर्छा टूटी तो वो चतुर्भुज गजमुख गणपति के इस रूप को देखकर डर गईं। राजा वरेण्य के पास यह सूचना पहुंचाई गई कि ऐसा बालक पैदा होना राज्य के लिये अशुभ होगा। बस राजा वरेण्य ने उस बालक यानि गणपति को जंगल में छोड़ दिया। जंगल में इस शिशु के शरीर पर मिले शुभ लक्षणों को देखकर महर्षि पराशर उस बालक को आश्रम लाये।

गणेशगीता के 11 अध्यायों के नाम

  1. गणेशगीता का प्रथम अध्याय सांख्यसारार्थ नामक है। इसमें श्री गणेश ने राजा वरेण्य को शांति का मार्ग बतलाया था।
  2. दूसरा अध्याय कर्मयोग नामक है। इसमें श्री गणेश जी ने राजा वरेण्य को कर्म के मर्म का उपदेश दिया था।
  3. तीसरा अध्याय विज्ञानयोग नामक है। इसमें श्री गणेश ने राजा वरेण्य को अपने अवतार-धारण करने का रहस्य बतलाया था।
  4. वैधसंन्यासयोग नाम के चौथे अध्याय में राजा वरेण्य को योगाभ्यास तथा प्राणायाम से संबंधित कई अहम बातें बतलाई थीं।
  5. योगवृत्तिप्रशंसनयोग नाम के पांचवें अध्याय में योगाभ्यास के अनुकूल-प्रतिकूल देश-काल-पात्र के बारे में राजा वरेण्य को बताया था।
  6. बुद्धियोग नामक छठे अध्याय में श्री गणेश ने राजा वरेण्य को बताया था कि मनुष्य में मुझे यानी ईश्वर को जानने की इच्छा तब उत्पन्न होती है जब किसी सत्कर्म का प्रभाव होता है। जैसा भाव होता है, उसके अनुरूप ही मैं उसकी इच्छा पूर्ण करता हूं। अंत में जो व्यक्ति मेरी इच्छा करता है और मुझमें लीन हो जाता है उनका योग-क्षेम मैं स्वयं वहन करता हूं।
  7. सातवें यानी उपासनायोग नामक अध्यानय में श्री गणेश ने राजा को भक्तियोग का वर्णन किया है।
  8. विश्वरूपदर्शनयोग नाम के आठवें अध्याय में श्री गणेश ने राजा को अपने विराट रूप का दर्शन कराया था।
  9. श्री गणेश ने नौवें अध्याय में राजा वरेण्य को क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का ज्ञान तथा सत्व, रज, तम-तीनों गुणों का परिचय दिया है।
  10. गणेशगीता का दसवां अध्याय उपदेशयोग नामक है। इसमें दैवी, आसुरी और राक्षसी-तीनों प्रकार की प्रकृतियों के बारे में राजा वरेण्य को श्री गणेश ने बतलाया है। इसमें बप्पा ने काम, क्रोध, लोभ और दंभ के बारे में बतलाया है।
  11. इसका अंतिम अध्याय त्रिविधवस्तुविवेक-निरूपणयोग नामक है। इसमें राजा को गणेश जी ने कायिक, वाचिक तथा मानसिक भेद से तप के प्रकारों के बारे में बताया है।

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