गबन उपन्यास – Gaban Novel By Premchand Hindi PDF

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गबन उपन्यास – Gaban Novel By Premchand - Summary

गबन (Gaban) उपन्यास प्रेमचंद जी द्वारा लिखा गया एक प्रमुख हिंदी उपन्यास है। यह उपन्यास 1931 में प्रकाशित हुआ था। “गबन” एक महत्वपूर्ण कहानी है जो व्यक्तिगत और सामाजिक उत्थान के मौद्रिक चित्रण का प्रयास करती है। प्रेमचंद जी इस उपन्यास में गरीबी, सामाजिक न्याय और व्यक्तिगत निर्णय के विभिन्न पहलुओं को बखूबी दर्शाते हैं। वे समाज के विभिन्न वर्गों की जीवनी को समझाने का कार्य करते हैं, जिससे पाठकों को समाज की वास्तविकता का पता चलता है।

कहानी का मुख्य पात्र

कहानी का केंद्रीय पात्र रमानाथ है, जो एक लाचार और उदार व्यक्ति है। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है, जिसकी वजह से वे गरीबी का सामना कर रहे हैं। रमानाथ को अपने बच्चों की शिक्षा के लिए कई कठिनाइयों का समाना करना पड़ता है। एक दिन, उन्हें एक लाभदायक अवसर मिलता है, लेकिन वह इसे खोना नहीं चाहते हैं।

गबन उपन्यास – Gaban By Munshi Premchand

नाटक उस वक्त ‘पास’ होता है, जब रसिक-समाज उसे पसंद कर लेता है। बरात का नाटक उस वक्त पास होता है, जब राह चलते आदमी उसे पसंद कर लेते हैं। नाटक की परीक्षा चार-पाँच घंटे तक होती रहती है, जबकि बरात की परीक्षा के लिए केवल इतने ही मिनटों का समय होता है। सारी सजावट, दौड़-धूप और तैयारी का निबटारा पाँच मिनटों में हो जाता है। अगर सबके मुँह से ‘वाह-वाह’ निकल गया, तो तमाशा पास हो जाता है, नहीं तो फेल। रुपया मेहनत, फिक्र, सब बेकार। दद्यानाथ का तमाशा पास हो गया। शहर में वह तीसरे दर्जे में आता, गाँव में अव्वल दर्जे में। कोई बाजों की धों-धों पों-पों सुनकर मस्त हो रहा था, कोई मोटर को आँखें फाड़-फाड़कर देख रहा था, कुछ लोग फुलवारियों के तख्त देखकर लोट-लोट जाते थे। आतिशबाजी ही मनोरंजन का केन्द्र थी। हवाइयाँ जब सन्न से ऊपर जातीं और आकाश में लाल, हरे, नीले, पीले कुमकुम से बिखर जाते, तो लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे। वाह, क्या कारीगरी है!

जालपा के लिए इन चीजों में लेशमात्र भी आकर्षण नहीं था। हाँ, वह वर को एक आँख देखना चाहती थी, वह भी सबसे छिपाकर; लेकिन उस भीड़-भाड़ में ऐसा अवसर कहाँ? द्वारचार के समय उसकी सखियाँ उसे छत पर खींच ले गईं और उसने रमानाथ को देखा। उसका सारा विराग, सारी उदासीनता, सारी मनोव्यथा मानो छू मंत्र हो गई थी। मुँह पर हर्ष की लालिमा छा गई। अनुराग स्फूर्ति का भंडार बन गया।

द्वारचार के बाद बरात जनवासे चली गई। भोजन की तैयारियाँ होने लगीं। किसी ने पूरियाँ खाईं, किसी ने उपलों पर खिचड़ी पकाई! देहात में तमाशा देखनेवालों के मनोरंजन के लिए नाच-गाना होने लगा।

दस बजे सहसा फिर बाजे बजने लगे। मालूम हुआ कि चढ़ाव आ रहा है। बरात में हर एक रस्म डंके की चोट अदा होती है। दूल्हा कलेवा करने आ रहा है, बाजे बजने लगे। समधी मिलने आ रहा है, बाजे बजने लगे। चढ़ाव आते ही घर में हलचल मच गई। पुरुष, बूढ़े, जवान, सब चढ़ाव देखने के लिए उत्सुक हो उठे। जैसे ही किश्तियाँ मंडप में पहुँचीं, लोग सब काम छोड़कर देखने दौड़े।

आपस में कम धक्का होने लगा। मानकी प्यास से बेहाल हो रही थी, उसका कंठ सूखा जाता था; चढ़ाव आते ही प्यास भागी। दीनदयाल मरे भूख-प्यास के निर्जीव से पड़े थे, यह समाचार सुनते ही सचेत होकर दौड़े। मानकी एक-एक चीज़ को निकालकर देखने और दिखाने लगी।

वहाँ सभी इस कला के विशेषज्ञ थे। मर्दों ने गहने बनवाए थे, औरतों ने पहने थे, सभी आलोचना करने लगे। चूहेदन्ती कितनी सुन्दर है, कोई दस तोले की होगी। वाह! साढ़े ग्यारह तोले से रत्ती भर भी कम निकल जाए, तो कुछ हार जाऊँ! यह शेरदहाँ तो देखो, क्या हाथ की सफाई है! जी चाहता है कारीगर के हाथ चूम लें। यह भी बारह तोले से कम न होगा। वाह! कभी देखा भी है, सोलह तोले से कम निकल जाए, तो मुँह न दिखाऊँ। हाँ, माल उतना चोखा नहीं है। यह कंगन तो देखो, बिल्कुल पक्की जड़ाई है, कितना बारीक काम है कि आँख नहीं ठहरती। कैसा दमक रहा है। सच्चे नगीने हैं। झूठे नगीनों में यह आब कहाँ? यह तो गुबंद है, कितने खूबसूरत फूल हैं! और उनके बीच के हीरे कैसे चमक रहे हैं! किसी बंगाली सुनार ने बनाया होगा। क्या बंगालियों ने कारीगरी का ठेका ले लिया है, हमारे देश में एक-से-एक कारीगर पड़े हुए हैं। बंगाली सुनार बेचारे उनकी क्या बराबरी करेंगे।

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