देवनागरी लिपि की विशेषताएँ Hindi

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देवनागरी लिपि की विशेषताएँ in Hindi

देवनागरी लिपि का सर्वप्रथम प्रयोग गुजरात के राजा जय भट्ट के एक शिलालेख में हुआ है। यह लिपि हिंदी प्रदेश के अतिरिक्त महाराष्ट्र व नेपाल में प्रचलित है गुजरात में सर्वप्रथम प्रचलित होने से वहां के पंडित वर्ग अर्थात नगर ब्रह्मांणों के नाम से इसे नागरे कहां गया। देव भाषा संस्कृत में इसका प्रयोग होने से इसके साथ जो शब्द जुड़ गया। देवताओं की उपासना के लिए जो संकेत बनाए जाते थे उन्हें देवनगर कहते थे। वे संकेत लिपि के समान थे वहीं से इसे देवनागरी कहा जाने लगा।

देवनागरी के व्यंजनों की विशेषता इस लिपि को और वैज्ञानिक बनाती है, जिसके फलस्वरूप क,च,ट,त,प, वर्ग के स्थान पर आधारित है और हर वर्ग के व्यंजन में घोषत्व का आधार भी सुस्पष्ट है, जैसे- पहले दो व्यंजन (च,छ) अघोष और शेष तीन व्यंजन (ज,झ,ञ) घोष होते हैं। देवनागरी व्यंजनों को हम प्राणत्व के आधार पर भी समझ सकते हैं, जैसे- प्रथम, तृतीय और पंचम व्यंजन अल्पप्राण और द्वितीय और चतुर्थ व्यंजन महाप्राण होता है। देवनागरी व्यंजनों को हम प्राणत्व के आधार पर भी समझ सकते हैं, जैसे- प्रथम, तृतीय और पंचम व्यंजन अल्पप्राण और द्वितीय और चतुर्थ व्यंजन महाप्राण होता है। इस तरह का वर्गीकरण और किसी और लिपि व्यवस्था में नहीं है।

देवनागरी की लिपि की विशेषता

देवनागरी के दोष

देवनागरी के चारों ओर से मात्राएं लगना और फिर शिरोरेखा खींचना लेखन में अधिक समय लेता है, रोमन और उर्दू में नहीं होता। ‘र’ के एक से अधिक प्रकार का होना, जैसे- रात, प्रकार, कर्म, राष्ट्र।

अत: यह कहा जा सकता है कि देवनागरी लिपि अन्य लिपियों की अपेक्षा अच्छी मानी जा सकती है, जिसमें कुछ सुधार की आवश्यकता महसूस होती है जैसे- वर्णों के लिखावट में सुधार की आवश्कता है क्योंकि ‘रवाना’ लिखने की परम्परा में सुधार हो कर अब ‘खाना’ इस तरह से लिखा जाने लगा है। इसी तरह से लिखने के पश्चात हमें शिरोरेखा पर विशेष ध्यान देना चाहिए, जैसे- ‘भर’ लिखते समय हमें शिरोरेखा थोड़ा जल्द बाजी कर दे तो ‘मर’ पढ़ा जाएगा। इन छोटी-छोटी बातों पर हमें विशेष ध्यान देना चाहिए।

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