श्रीमद्भगवद्‌गीता (Shrimad Bhagavad Gita) Hindi

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श्रीमद्भगवद्‌गीता (Shrimad Bhagavad Gita) in Hindi

Bhagavad Gita

The Bhagavad Gita is an ancient Indian text that became an important work of Hindu tradition in terms of both literature and philosophy.

The Bhagavad Gita was written at some point between 400 BCE and 200 CE. Like the Vedas and the Upanishads, the authorship of the Bhagavad Gita is unclear.

श्रीमद्भगवद्‌गीता (Bhagavad Gita in Hindi) (Geeta Book in Hindi)

भगवद-गीता प्राचीन भारत से आध्यात्मिक ज्ञान का शाश्वत संदेश है। गीता शब्द का अर्थ है गीत और शब्द। भगवद का अर्थ है भगवान, अक्सर भगवद-गीता को भगवान का गीत कहा जाता है। भगवद गीता धर्म, आस्तिक भक्ति और मोक्ष के योगिक आदर्शों के बारे में हिंदू विचारों का संश्लेषण प्रस्तुत करती है। पाठ में ज्ञान, भक्ति, कर्म और राज योग (6 वें अध्याय में कहा गया) शामिल हैं, जिसमें सांख्य-योग दर्शन के विचारों को शामिल किया गया है।

गीता पांडव राजकुमार अर्जुन और उनके मार्गदर्शक और सारथी कृष्ण के बीच एक संवाद के एक कथात्मक ढांचे में स्थापित है। पांडवों और कौरवों के बीच धर्म युद्ध (धार्मिक युद्ध) की शुरुआत में, अर्जुन अपने ही रिश्तेदारों के खिलाफ युद्ध में होने वाली हिंसा और मृत्यु के बारे में नैतिक दुविधा और निराशा से भर जाता है। कृष्ण-अर्जुन संवाद आध्यात्मिक विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला को कवर करते हैं, जो नैतिक दुविधाओं और दार्शनिक मुद्दों को छूते हैं जो अर्जुन के युद्ध से बहुत आगे जाते हैं।

Bhagavad Gita Saar in Hindi

गीता सार में श्री कृष्ण ने कहा है कि हर इंसान के द्धारा जन्म-मरण के चक्र को जान लेना बेहद आवश्यक है, क्योंकि मनुष्य के जीवन का मात्र एक ही सत्य है और वो है मृत्यु। क्योंकि जिस इंसान ने इस दुनिया में जन्म लिया है। उसे एक दिन इस संसार को छोड़ कर जाना ही है और यही इस दुनिया का अटल सत्य है। लेकिन इस बात से भी नहीं नकारा जा सकता है कि हर इंसान अपनी मौत से भयभीत रहता है।

श्री कृष्ण ने Geeta Saar में बताया है कि कोई भी व्यक्ति अपने कर्म को नहीं छोड़ सकता है अर्थात् जो साधारण समझ के लोग कर्म में लगे रहते हैं उन्हें उस मार्ग से हटाना ठीक नहीं है क्योंकि वे ज्ञानवादी नहीं बन सकते। अर्थात मनुष्य के जीवन की अटल सच्चाई से भयभीत होना, इंसान की वर्तमान खुशियों को भी खराब कर देता है। इसलिए किसी भी तरह का डर नहीं रखना चाहिए।

वहीं अगर उनका कर्म भी छूट गया तो वे दोनों तरफ से भटक जाएंगे। और प्रकृति व्यक्ति को कर्म करने के लिए बाध्य करती है। जो व्यक्ति कर्म से बचना चाहता है वह ऊपर से तो कर्म छोड़ देता है लेकिन मन ही मन उसमे डूबा रहता है। अर्थात जिस तरह व्यक्ति का स्वभाव होता है वह उसी के अनूरुप अपने कर्म करता है।

हे अर्जुन! मैं ही गर्मी प्रदान करता हूँ और बारिश को लाता और रोकता हूँ। मैं अमर हूँ और साक्षात् मृत्यु भी हूँ। आत्मा तथा पदार्थ दोनों मुझ ही में हैं। जो लोग भक्ति में श्रद्धा नहीं रखते, वे मुझे पा नहीं सकते। अतः वे इस दुनिया में जन्म-मृत्यु के रास्ते पर वापस आते रहते हैं। जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के पश्चात् पुनर्जन्म भी निश्चित है। प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को क्रोध और लोभ त्याग देना चाहिए क्योंकि इससे आत्मा का पतन होता है। हे अर्जुन! क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है, जब बुद्धि व्यग्र होती है, तब तर्क नष्ट हो जाता है, जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।

Bhagwat Geeta (श्रीमद्भगवद्गीता)

श्रीमद्भगवद्गीता एक ऐसा विलक्षण ग्रन्थ है, जिसका आजतक न तो कोई पार पा सका, न पार पाता है, न पार पा सकेगा और न पार पा ही सकता है। गहरे उतरकर इसका अध्ययन-मनन करने पर नित्य नये-नये विलक्षण भाव प्रकट होते रहते हैं। गीता में जितना भाव भरा है, उतना बुद्धिमें नहीं आता। जितना बुद्धि में आता है, उतना मन में नहीं आता। जितना मन में आता है, उतना कहने में नहीं आता। जितना कहने में आता है, उतना लिखने में नहीं आता।

गीता असीम है, पर उसकी टीका सीमित ही होती है। हमारे अन्तःकरण में गीता के जो भाव आये थे, वे पहले ‘साधकसंजीवनी’ टीका में लिख दिये थे। परन्तु उसके बाद भी विचार करने पर भगवत्कृपा तथा सन्तकृपा से गीता के नये-नये भाव प्रकट होते गये। उनको अब ‘परिशिष्ट भाव’ के रूपमें ‘साधक-संजीवनी’ टीका में जोड़ा जा रहा है।

साधक-संजीवनी’ टीका लिखते समय हमारी समझ में निर्गुण की मुख्यता रही; क्योंकि हमारी पढ़ाई में निर्गुण की मुख्यता रही और विचार भी उसी का किया। परन्तु निष्पक्ष होकर गहरा विचार करने पर हमें भगवान्के सगुण (समग्र) स्वरूप तथा भक्ति की मुख्यता दिखायी दी। केवल निर्गुण की मुख्यता माननेसे सभी बातों का ठीक समाधान नहीं होता। परन्तु केवल सगुण की मुख्यता मानने से कोई सन्देह बाकी नहीं रहता।

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