Balamani Amma Poems Hindi Hindi

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Balamani Amma Poems Hindi in Hindi

बालमणि के मामा कवि थे। उनके पास किताबों का अच्छा-खासा कलेक्शन था। इसी के सहारे बालमणि को कवि बनने में मदद मिली। हालांकि, 19 साल की उम्र में बालमणि अम्मा की शादी हो गई। बालमणि अम्मा के तकरीबन 20 से ज्यादा गद्द और अनुपाद प्रकाशित हुए हैं। उन्हें भारत का तीसरा सर्वोच्चा नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण सम्मान भी मिला है। इसके अलावा उन्हें सरस्वती सम्मान और साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

जब भी किसी की जयंती या पुण्यतिथी आती है तो लोग अपने-अपने अंदाज में उसे सेलिब्रेट करते हैं। गूगल भी खास अंदाज में डूडल बनाकर उन्हें याद करता है। इसी कड़ी में आज गूगल ने मलयालम भाषा में लिखने वाली मशहूर कवि बालमणि अम्मा को अपना डूडल समर्पित किया है।

Balamani Amma Poems Hindi

“बतलाओ माँ
मुझे बतलाओ
कहाँ से, आ पहुँची यह छोटी-सी बच्ची?”
अपनी अनुजाता को
परसते-सहलाते हुए
मेरा पुत्र पूछ रहा था
मुझसे;
यह पुराना सवाल
जिसे हज़ारों लोगों ने
पहले भी बार-बार पूछा है।
प्रश्न जब उन पल्लव-अधरों से फूट पड़ा
तो उससे नवीन मकरन्द की कणिकाएँ चू पड़ीं;
आह, जिज्ञासा
जब पहली बार आत्मा से फूटती है
तब कितनी आस्वाद्य बन जाती है
तेरी मधुरिमा!
कहाँ से? कहाँ से?
मेरा अन्तःकरण भी
रटने लगा यह आदिम मन्त्र।
समस्त वस्तुओं में
मैं उसी की प्रतिध्वनि सुनने लगी
अपने अन्तरंग के कानों से;
हे प्रत्युत्तरहीण महाप्रश्न!
बुद्धिवादी मनुष्य की
उद्धत आत्मा में
जिसने तुझे उत्कीर्ण कर दिया है
उस दिव्य कल्पना की जय हो!
अथवा
तुम्हीं हो
वह स्वर्णिम कीर्ति-पताका
जो जता रही है सृष्टि में मानव की महत्ता।
ध्वनित हो रहे हो
तुम
समस्त चराचरों के भीतर
शायद,
आत्मशोध की प्रेरणा देने वाले
तुम्हारे आमंत्रण को सुनकर
गाएँ देख रही हैं
अपनी परछाईं को
झुककर।
फैली हुई फुनगियों में
अपनी चोंचों से
अपने-आप को टटोल रही हैं, चिड़ियाँ।
खोज रहा है अश्वत्थ
अपनी दीर्घ जटाओं को फैलाकर
मिट्टी में छिपे मूल बीज को;
और, सदियों से
अपने ही शरीर का
विश्लेषण कर रहा है
पहाड़।
ओ मेरी कल्पने,
व्यर्थ ही तू प्रयत्न कर रही है
ऊँचे अलौकिक तत्वों को छूने के लिए।
कहाँ तक ऊँची उड़ सकेगी यह पतंग
मेरे मस्तिष्क की पकड़ में?
झुक जाओ मेरे सिर
मुन्ने के जिज्ञासा-भरे प्रश्न के सामने!
गिर जाओ, हे ग्रंथ-विज्ञान
मेरे सिर पर के निरर्थक भार-से
तुम इस मिट्टी पर।
तुम्हारे पास स्तन्य को एक कणिका भी नहीं
बच्चे की बढ़ी हुई सत्य-तृष्णा को—
बुझाने के लिए।
इस नन्हीं-सी बुद्धि को थामने-सम्भालने के लिए
कोई शक्तिशाली आधार भी तुम्हारे पास नहीं!
हो सकता है
मानव की चिन्ता पृथ्वी से टकराए
और सिद्धान्त की चिंगारियाँ बिखेर दे।
पर, अंधकार में है
उस विराट सत्य की सार-सत्ता
आज भी यथावत।
घड़ियाँ भागी जा रही थीं
सौ-सौ चिन्ताओं को कुचलकर;
विस्मयकारी वेग के साथ उड़-उड़कर छिप रही थीं
खारे समुद्र की बदलती हुई भावनाएँ
अव्यक्त आकार के साथ,
अन्तरिक्ष के पथ पर।
मेरे बेटे ने प्रश्न दुहराया
माता के मौन पर अधीर होकर।
“मेरे लाल
मेरी बुद्धि की आशंका अभी तक ठिठक रही है
इस विराट प्रश्न में डुबकी लगाने के लिए,
और जिसको
तल-स्पर्शी आँखों ने भी नहीं देखा है,
उस वस्तु को टटोलने के लिए।
हम सब कहाँ से आए?
मैं कुछ भी नहीं जानती!
तुम्हारे इन नन्हें हाथों से ही
नापा जा सकता है
तुम्हारी माँ का तत्त्व-बोध।”
अपने छोटे से प्रश्न का
जब कोई सीधा प्रत्युत्तर नहीं मिल सका
तो मुन्ना मुस्कुराता हुआ बोल उठा
“माँ भी कुछ नहीं जानती।”

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