Atharva Veda (अथर्ववेद) - Summary
अथर्ववेद (Atharva Veda) भारतीय वेदों में सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है, जो आयुर्वेद और विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों पर भी गहरा विश्वास रखता है। इसमें कई तरह की चिकित्सा विधियों का सही वर्णन किया गया है। अथर्ववेद गृहस्थाश्रम के अंदर पति-पत्नी के कर्तव्य और विवाह के नियमों तथा मान-मर्यादाओं की भी अच्छे से व्याख्या करता है। इस वेद में ब्रह्म की उपासना से संबंधित अनेक मंत्र भी हैं, जैसे कि – वाचस्पति, पर्जन्य, आप:, इंद्र, ब्रहस्पति, पूषा, विद्युत, यम, वरुण, सोम, सूर्य, आशपाल, पृथ्वी, विश्वेदेवा, हरिण्यम:, ब्रह्म, गंधर्व, अग्नि, प्राण, वायु, चंद्र, मरुत, मित्रावरुण, आदित्य। कुल देवी और देवताओं की संख्या 40 है, जिसमें प्राकृतिक शक्तियों का भी समावेश होता है।
अथर्ववेद का स्वरूप
ऋग्वेद ज्ञानकाण्ड है, यजुर्वेद कर्मकाण्ड है, सामवेद उपासनीकाण्ड है और अथर्ववेद विज्ञानकाण्ड है। भाष्यकार के अनुसार, ऋग्वेद मस्तिष्क का वेद है, यजुर्वेद हाथों का वेद है, सामवेद हृदय का वेद है और अथर्ववेद उदर-पेट का वेद है। यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि उदर विकारों से ही अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। इस वेद में विभिन्न प्रकार की औषधियों का उल्लेख कर शरीर को नीरोग, स्वस्थ और शांत रखने के उपाय बताए गए हैं।
अथर्ववेद में राष्ट्र की सुरक्षा से संबंधित अनेक प्रकार के भयंकरतम अस्त्र और शस्त्रों का भी वर्णन किया गया है। इस प्रकार, यह युद्ध और शांति का वेद है। इसमें बीस काण्ड, 731 सूक्त और 5977 मंत्र हैं। सबसे छोटा सूक्त एक मंत्र का है, जबकि सबसे बड़ा सूक्त 89 मंत्रों का है। इसे ब्रह्मवेद भी कहा जाता है। इस वेद के कई सूक्तों में ब्रह्म परमेश्वर का हृदय से वर्णन किया गया है, जिसे पढ़ते वक्त पाठक भावविभोर हो उठता है।
अथर्ववेद की महिमा
हिन्दू धर्म के चार पवित्र वेदों में से अथर्ववेद की संहिता यानी मंत्र भाग विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इसे ब्रह्मवेद भी कहते हैं। इसमें देवताओं की स्तुति के साथ-साथ चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मंत्र शामिल हैं। कहा गया है कि जिस राजा के राज्य में अथर्ववेद का ज्ञान रखने वाला विद्वान् शान्ति स्थापन के कार्य में लगा रहता है, वह राष्ट्र शांतिपूर्ण और निरंतर उन्नति की ओर बढ़ता है।
यह ज्ञान सर्वप्रथम भगवान ने महर्षि अंगिरा को प्रदान किया था, और फिर महर्षि अंगिरा ने यह ज्ञान ब्रह्मा को दिया। भूगोल, खगोल, वनस्पति विद्या, अनगिनत जड़ी-बूटियाँ, आयुर्वेद, गंभीर रोगों का निदान, अर्थशास्त्र, राजनीति, राष्ट्रभूमि, राष्ट्रीय भाषा, शल्यचिकित्सा, कृमियों से होने वाले रोगों का निदान, मृत्यु को टालने के उपाय, मोक्ष, प्रजनन-विज्ञान आदि सैकड़ों उपयोगी विषयों का वर्णन अथर्ववेद में मिलता है। आयुर्वेद की दृष्टि से, अथर्ववेद का महत्व अत्यधिक है। इसमें शांति-पुष्टि और अभिचारिक दोनों तरह के अनुष्ठान भी वर्णित हैं।
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