Agastya Sanhita (अगस्त्य संहिता) Hindi

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Agastya Sanhita (अगस्त्य संहिता) in Hindi

अगस्त्य संहिता - Agastya Sanhita

अगस्त्य संहिता प्राचीन ऋषि अगस्त्य को जिम्मेदार संस्कृत पाठ में कई कार्यों का शीर्षक है। पंचरात्रगाम की एक संहिता अगस्त्य संहिता है, जो अगस्त्य द्वारा निर्धारित राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान की पूजा के बारे में है। इसे अगस्त्य-सुतीक्ष-संवाद के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यह ऋषियों सुतीक्ष और अगस्त्य के बीच बातचीत के रूप में है। पंचरात्र ग्रंथों में अगस्त्य संहिता नामक अन्य रचनाएँ भी हैं, जो सूतकृष्ण-अगस्त-संवाद से भिन्न हैं।

अगस्त्य संहिता गरुड़ पुराण के तीन खंडों में से एक का नाम है जो रत्नों के अध्ययन से संबंधित है; अन्य दो बृहस्पति संहिता (नितिसार) और धन्वंतरि संहिता हैं जो भौतिक विज्ञान, न्यायशास्त्र और चिकित्सा पर एक अध्ययन है।

अगस्त्य संहिता – Agastya Sanhita Hindi

अगस्त्य एक वैदिक ॠषि थे। ये वशिष्ठ मुनि के बड़े भाई थे। इनका जन्म श्रावण शुक्ल पंचमी (तदनुसार ३००० ई.पू.) को काशी में हुआ था। वर्तमान में वह स्थान अगस्त्यकुंड के नाम से प्रसिद्ध है। इनकी पत्नी लोपामुद्रा विदर्भ देश की राजकुमारी थी। इन्हें सप्तर्षियों में से एक माना जाता है। देवताओं के अनुरोध पर इन्होंने काशी छोड़कर दक्षिण की यात्रा की और बाद में वहीं बस गये थे। वैज्ञानिक ऋषियों के क्रम में महर्षि अगस्त्य भी एक वैदिक ऋषि थे। महर्षि अगस्त्य राजा दशरथ के राजगुरु थे। इनकी गणना सप्तर्षियों में की जाती है। महर्षि अगस्त्य को मं‍त्रदृष्टा ऋषि कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने तपस्या काल में उन मंत्रों की शक्ति को देखा था। ऋग्वेद के अनेक मंत्र इनके द्वारा दृष्ट हैं। महर्षि अगस्त्य ने ही ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 165 सूक्त से 191 तक के सूक्तों को बताया था। साथ ही इनके पुत्र दृढ़च्युत तथा दृढ़च्युत के बेटा इध्मवाह भी नवम मंडल के 25वें तथा 26वें सूक्त के द्रष्टा ऋषि हैं।

महर्षि अगस्त्य को पुलस्त्य ऋषि का बेटा माना जाता है। उनके भाई का नाम विश्रवा था जो रावण के पिता थे। पुलस्त्य ऋषि ब्रह्मा के पुत्र थे। महर्षि अगस्त्य ने विदर्भ-नरेश की पुत्री लोपामुद्रा से विवाह किया, जो विद्वान और वेदज्ञ थीं। दक्षिण भारत में इसे मलयध्वज नाम के पांड्य राजा की पुत्री बताया जाता है। वहां इसका नाम कृष्णेक्षणा है। इनका इध्मवाहन नाम का पुत्र था।

अगस्त्य के बारे में कहा जाता है कि एक बार इन्होंने अपनी मंत्र शक्ति से समुद्र का समूचा जल पी लिया था, विंध्याचल पर्वत को झुका दिया था और मणिमती नगरी के इल्वल तथा वातापी नामक दुष्ट दैत्यों की शक्ति को नष्ट कर दिया था। अगस्त्य ऋषि के काल में राजा श्रुतर्वा, बृहदस्थ और त्रसदस्यु थे। इन्होंने अगस्त्य के साथ मिलकर दैत्यराज इल्वल को झुकाकर उससे अपने राज्य के लिए धन-संपत्ति मांग ली थी।

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